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ग़ज़ल
जुरअत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना मुझे क्यों कर हो 'कँवल'
ख़ातिर-ए-हुस्न पे हर बात गिराँ गुज़री है
कँवल एम ए
ग़ज़ल
आओ कि अब तो जुरअत-ए-जुर्म-ए-सुख़न करें
फ़िक्र-ए-सुख़न को छोड़ के फ़िक्र-ए-चमन करें
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
मताअ'-ए-जुरअत-ए-दिल वक़्फ़-ए-यक-निगाह-ए-करम
वजूद बे-सर-ओ-सामाँ रहीन-ए-मुल्क-ए-अदम
तल्हा रिज़वी बर्क़
ग़ज़ल
क़द्र-दाँ कोई सुख़न का न रहा ऐ 'जुरअत'
कुंज-ए-तन्हाई में औक़ात तू ख़ामोश गुज़ार
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
मैं ने मंज़र ही नहीं देखे हैं पस-मंज़र भी
मुझ में अब जुरअत-ए-दीदार कहाँ से आई