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ग़ज़ल
मुड़ के देखूँ तो अक़ब में कुछ नज़र आता नहीं
सामने भी गुम निशान-ए-रह-गुज़र होने को है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल
किसी की याद में मिस्ल-ए-चराग़-ए-रह-गुज़र तन्हा
गुज़ारी है शब-ए-ग़म हम ने अक्सर जाग कर तन्हा
ज़फ़र संभली
ग़ज़ल
निपटेंगे दिल से मार्का-ए-रह-गुज़र के ब'अद
लेंगे सफ़र का जाएज़ा ख़त्म-ए-सफ़र के ब'अद
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
मिला भी ज़ीस्त में क्या रन्ज-ए-रह-गुज़ार से कम
सो अपना शौक़-ए-सफ़र भी नहीं ग़ुबार से कम
अंबरीन हसीब अंबर
ग़ज़ल
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हरीम-ए-नाज़ की ख़ल्वत में दस्तरस है किसे
नज़ारा-हा-ए-सर-ए-रह-गुज़र की बात करो