aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "normal"
हमारी ग़ज़लों में यूँ तो सब कुछ ही नॉर्मल हैबस आँसुओं के निशाँ मिलेंगे कहीं कहीं पर
आसमानों से ज़मीं की तरफ़ आते हुए हमएक मजमे के लिए शेर सुनाते हुए हम
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गएआप तो आए नहीं पर फूल महँगे हो गए
बताऊँ कैसे कि सच बोलना ज़रूरी हैतअल्लुक़ात में ये तजरबा ज़रूरी है
बरसों पुराने ज़ख़्म को बे-कार कर दियाहम ने तिरा जवाब भी तय्यार कर दिया
हर छन हो जब आस लिएहर छन फिर निर्बल क्या हो
अब ऐसी वैसी मोहब्बत को क्या सँभालूँ मैंये ख़ार-ओ-ख़स का बदन फूँक ही न डालूँ मैं
दिल भी एहसासात भी जज़्बात भीकम नहीं हैं हम पे इल्ज़ामात भी
जाने किस उम्मीद पे छोड़ आए थे घर-बार लोगनफ़रतों की शाम याद आए पुराने यार लोग
दूर गगन पर हँसने वाले निर्मल कोमल चाँदबे-कल मन कहता है आओ हाथ लगाएँ तुम्हें
तबाह ख़ुद को उसे ला-ज़वाल करते हैंहमारे लोग जुनूँ में कमाल करते हैं
वो हँसना याद आता है वो रोना याद आता हैतुझे ऐ ज़िंदगी पा कर वो खोना याद आता है
ख़ुदा मु'आफ़ करे ज़िंदगी बनाते हैंमिरे गुनाह मुझे आदमी बनाते हैं
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गयाक्या हाल पेड़ कटते ही बस्ती का हो गया
इंसानियत के ज़ो'म ने बर्बाद कर दियापिंजरे में आ के शेर को आज़ाद कर दिया
एक आयत पढ़ के अपने-आप पर दम कर दियाहम ने हर चेहरे की जानिब देखना कम कर दिया
ऐसे मिले नसीब से सारे ख़ुदा कि बसमैं बंदगी के ज़ोम में चिल्ला उठा कि बस
मस्जिदों में क़त्ल होने की रिवायत है यहाँऔर जिसे भी देखिए वो बा-जमाअत है यहाँ
भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत सेदिए जलाएँगे हम भी मगर ज़रूरत से
सब अपने अपने ख़ुदाओं में जा के बैठ गएसो हम भी ख़ौफ़ की चादर बिछा के बैठ गए
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