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ग़ज़ल
हर क़दम पर साथ मेरे लग़्ज़िशों की भीड़ थी
चश्म-ए-बालिग़ से उन्हें सर्फ़-ए-नज़र उस ने किया
सईद नज़र
ग़ज़ल
हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तिरा दामन कभी थामा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
यादों के फूल हद्द-ए-नज़र तक खिले हैं फिर
दश्त-ए-फ़िराक़ रश्क-ए-गुलिस्ताँ है इन दिनों