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ग़ज़ल
शब-ए-विसाल की यारब न रौशनी कम हो
वो नूर-ए-आरिज़-ए-रश्क-ए-क़मर क़मर में रहे
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
ऐ रश्क-ए-क़मर आगे तिरे शम्स-ओ-क़मर क्या
सौ जाँ से फ़िदा हूँ मैं ये है जान-ओ-जिगर क्या
मरदान सफ़ी
ग़ज़ल
जल्वा-फ़रमा है जो वो रश्क-ए-क़मर आज की रात
मिस्ल-ए-फ़िरदौस है रौशन मिरा घर आज की रात
साबिर रामपुरी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
दिल ही था बस में ना वो रश्क-ए-क़मर आज की रात
कुछ अजब ढंग से की हम ने सहर आज की रात
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
सहर जब बिस्तर-ए-राहत से वो रश्क-ए-क़मर उट्ठा
ग़ुलामी उस की में ख़ुर्शीद ले तेग़-ओ-सिपर उट्ठा
लाल कांजी मल सबा
ग़ज़ल
इशारा तेरी नज़रों का भी था लेकिन सर-ए-महशर
सभी इल्ज़ाम ऐ रश्क-ए-क़मर मेरे ही सर निकले
नूर अहमद शैख़
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ सरकाओ ज़रा आरिज़-ए-ताबाँ से कभी
चाँदनी रात को ऐ रश्क-ए-क़मर होने दो