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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
बे-ख़याली में यूँही बस इक इरादा कर लिया
अपने दिल के शौक़ को हद से ज़ियादा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
मिरा इरादा तो पहले ही से है मान जाने का सच बताऊँ
तुम अपने भर भी तमाम हर्बों को आज़माओ मुझे मनाओ