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ग़ज़ल
कहीं है अब्द की धुन और कहीं शोर-ए-अनल-हक़ है
कहीं इख़्फ़ा-ए-मस्ती है कहीं इज़हार-ए-मस्ती है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
हम से हम-चश्मी अनल-हक़ को कहाँ मक़्दूर है
अश्क हर यक-दार मिज़्गाँ पर मिरे मंसूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
ज़रा फ़ुर्सत मिले क़िस्मत की चौसर से तो सोचूँगा
कि ख़्वाहिश और हासिल का ये अंतर क्यूँ नहीं जाता
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
क़तरों के लब पे शोर-ए-अनल-बहर है रवाँ
तक़लीद क्या ये हज़रत-ए-मंसूर की नहीं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
फिर तो मिज़राब-ए-जुनूँ साज़-ए-अना-लैला छेड़
हाए वो शोर-ए-अनल-क़ैस कि महमिल से उठा
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
अनल-हक़ की हक़ीक़त को जो हो मंसूर सो जाने
कि उस को आसमाँ चढ़ने से चढ़ना दार बेहतर था