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ग़ज़ल
तेज़ नहीं गर आँच बदन की जम जाओगे रस्ते में
उस बस्ती को जाने वाली पगडंडी यख़-बस्ता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
पेड़ थे साए थे पगडंडी थी इक जाती हुई
क्या ये सब कुछ ख़्वाब था सच-मुच यहाँ ऐसा न था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
अब चलना है तो चलना है क्या पाँव के छालों को देखें
इस धरती की पग-डंडी से कोई ठिकाना पा जाएँ
सालिक लखनवी
ग़ज़ल
इस बस्ती में एक सड़क है जिस से हम को नफ़रत है
उस के नीचे पगडंडी है जिस के हम गिरवीदा हैं
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
नीले सुर्ख़ सफ़ेद सुनहरे एक एक करके डूब गए
सम्तों की हर पगडंडी पर काला रंग पिघलने लगा
शमीम हनफ़ी
ग़ज़ल
शीशे के सपनों को ले कर प्यार की ख़ातिर आई हूँ
हाथ मिरा तुम थाम के चलना जीवन की पगडंडी में
ताैफ़ीक़ साग़र
ग़ज़ल
पगडंडी जो रंज-ओ-अलम को जाती थी वो याद नहीं
ख़ुशियों का भी शीश-महल में एक था डेरा भूल गए
अनवार हबीब
ग़ज़ल
हर टीले की ओट से लाखों वहशी आँखें चमकेंगी
माज़ी की हर पगडंडी पर नेज़ों में घिर जाओगे
नूर बिजनौरी
ग़ज़ल
किन खेतों में खो गए उस के चाँदी जैसे पाँव
गाँव की पगडंडी तक जा कर है रस्ता बेचैन