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ग़ज़ल
आज ज़रा ललचाई नज़र से उस को बस क्या देख लिया
पग-पग उस के दिल की धड़कन उतरी आए पायल में
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
सजा कर चाँद का गजरा ये पगली रात आती है
बिखरती साँस की सरगम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम
मधूरिमा सिंह
ग़ज़ल
बंद किवाड़ों पर इक जानी पहचानी दस्तक जो सुनी
यूँही डूपट्टा छोड़ के भागी नंगे पाँव ही पगली मैं