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ग़ज़ल
मिरे वहम-ओ-गुमाँ पे रात दिन छाई उदासी है
पहन कर ख़्वाहिशों का ये बदन आई उदासी है
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ
पहन लेता हूँ जब दस्तार तो सर भूल जाता हूँ