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ग़ज़ल
बात तो जब है शोले निकलें बरबत-ए-दिल के तारों से
शोर नहीं नग़्मे पैदा हों तेग़ों की झंकारों से
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
सूरज के पापों की गठरी सर पर लादे थकी थकी सी
ख़ामोशी से मुँह लटकाए चल देती है पैदल शाम