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ग़ज़ल
क्या बोलेगा आज तराज़ू भेद अभी खुल जाएगा
इक पलड़े में सच रक्खा है एक में चाँदी रक्खी है
इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
अपनी नज़र के बाट न रक्खें 'साज़' हम इक पलड़े में
बोझल तन्क़ीदों से क्यूँ अपने इज़हार को तौलें
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
निगाह-ए-आस से देखे है सब तरफ़ सर-ए-हश्र
किसी के पलड़े में 'गुलफ़ाम' नेकियाँ कम हैं
मुहिउद्दीन गुल्फ़ाम
ग़ज़ल
इक पलड़े में जीवन रख दे दूजे में रख उस का नाम
क्या बोले फिर देख तराज़ू अल्लाह-हू हक़ अल्लाह-हू
इक़बाल असलम
ग़ज़ल
जब वो जमाल-ए-दिल-फ़रोज़ सूरत-ए-मेहर-ए-नीमरोज़
आप ही हो नज़ारा-सोज़ पर्दे में मुँह छुपाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हम कि दुख ओढ़ के ख़ल्वत में पड़े रहते हैं
हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है