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ग़ज़ल
नाज़ ओ अदा ओ ग़म्ज़ा निगह पंजा-ए-मिज़ा
मारें हैं एक दिल को ये पिल पिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
हो गया ज़ौक़ फ़ज़ा-ए-ख़लिश-ए-याद-ए-मिज़ा
कौन कहता है कि लज़्ज़त तिरे पैकाँ में नहीं
सालिक देहलवी
ग़ज़ल
पंजा-ए-मिज़्गान-ए-तर ने ये उड़ाईं धज्जियाँ
तार बाक़ी एक भी दामान-ए-साहिल में नहीं
मुज़फ़्फ़र अली असीर
ग़ज़ल
इम्तिहाँ क़ुव्वत का है तलवार उठाई जाती है
अब तो इस क़ाबिल हुए हैं पंजा-ओ-बाज़ू-ए-दोस्त
रशीद लखनवी
ग़ज़ल
बस जिगर को लुत्फ़-ए-यक-तीर-ए-मिज़ा दरकार है
कार-ए-ग़म-ख़्वारी निगाह-ए-आश्ना हो जाएगा
मिन्हाज अली
ग़ज़ल
अब्रू-ओ-चश्म-ओ-निगाह-ओ-मिज़ा हर इक ख़ूँ-ख़्वार
एक दिल है मिरा तिस पर हैं दिल-आज़ार कई
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
तार-ए-मल्बूस-ए-ख़ुदी क्यूँ रहें बाक़ी मेरे
पंजा-ए-दस्त-ए-जुनूँ अपना है वहशत अपनी