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ग़ज़ल
पंजा है मिरा पंजा-ए-ख़ुर्शीद मैं हर सुब्ह
मैं शाना-सिफ़त साया-ए-रू ज़ुल्फ़-ए-बुताँ हूँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
कि है सर-पंजा-ए-मिज़्गान-ए-आहू पुश्त-ख़ार अपना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नाज़ ओ अदा ओ ग़म्ज़ा निगह पंजा-ए-मिज़ा
मारें हैं एक दिल को ये पिल पिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
बस-कि हर-यक-मू-ए-ज़ुल्फ़-अफ़्शाँ से है तार-ए-शुआअ'
पंजा-ए-ख़ुर्शीद को समझे हैं दस्त-ए-शाना हम
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हुजूम-ए-रेज़िश-ए-ख़ूँ के सबब रंग उड़ नहीं सकता
हिना-ए-पंजा-ए-सैय्याद मुर्ग़-ए-रिश्ता बर-पा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल तलक पहुँचे न पहुँचे मगर ऐ चश्म-ए-हयात
बाद मुद्दत के तिरा पंजा-ए-मिज़्गाँ तो खुला
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
गिरफ़्त पंजा-ए-फ़ना में ख़स्ता-हाल-ओ-ख़ूँ-चकाँ
हयात-ए-मुस्तआर है ज़मीं से आसमान तक
राग़िब मुरादाबादी
ग़ज़ल
पंजा-ए-मेहर को भी ख़ून-ए-शफ़क़ में हर रोज़
ग़ोते क्या क्या है तिरा दस्त-ए-हिनाई देता