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ग़ज़ल
बे-ताल है कैसी ये सरगम बे-लहरा पंजम है मद्धम
जो राग है दीपक इस मन में उस राग को कैसे गा जाएँ
सालिक लखनवी
ग़ज़ल
पंजम ग़ज़ल अब 'इंशा' अंदाज़ की सुना दी
आग़ोश में मआ'नी जिस के लिपट रहे हों
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं
मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
चले लाख चाल दुनिया हो ज़माना लाख दुश्मन
जो तिरी पनाह में हो उसे क्या किसी से डरना