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ग़ज़ल
हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन ओ दिल अज़ीज़ उस की गली में जाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जो भी हैं पर्वर्दा-ए-शब जो भी हैं ज़ुल्मत परस्त
वो तो जाएँगे उसी जानिब जिधर जाएगी रात
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
मुझ को ख़ुदा से आश्ना कोई भला करेगा क्या
मैं तो सनम-परस्त हूँ मेरा कोई ख़ुदा नहीं
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
हिन्दू हैं बुत-परस्त मुसलमाँ ख़ुदा-परस्त
पूजूँ मैं उस किसी को जो हो आश्ना-परस्त