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ग़ज़ल
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
जो मुश्किल अब है या रब फिर वही मुश्किल न बन जाए
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना