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ग़ज़ल
मैं इक परकार सा सय्यार भी हूँ और साबित भी
जहाँ सारा मिरे क़दमों की पैमाइश में रहता है
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
उस्तुरा फिरने से रू-ए-यार पर है दौर-ए-ख़त
चाल उस कम-बख़्त ने सीखी है क्या परकार की
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
कुछ परिंदों को मिली ऊँची उड़ानों की सज़ा
कुछ को लेकिन क़ैद में पर-दार होना था हुए
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
निकलने ही न पाए हल्क़ा-ए-दश्त-ए-तमन्ना से
मिली थी गर्दिश-ए-पर्कार ऐसी कुछ ग़ज़ालों को