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ग़ज़ल
रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम
परवरिश-याफ़्ता-ए-ख़ाना-ए-सय्याद हैं हम
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
दाम में से जो छुटे हैं उन्हें ये हुक्म हुआ
कि बस अब गर्द-ए-दर-ए-ख़ाना-ए-सय्याद रहो
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
जब क़फ़स में आए थे हम वो भी क्या हंगाम था
बाग़ से ता-ख़ाना-ए-सय्याद इक कोहराम था
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
ज़मज़मे ख़ाना-ए-सय्याद के क्यूँ गूँजते हैं
क्या कोई ताज़ा गिरफ़्तार हुआ मेरे बाद
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
किस गिरफ़्तार-ए-क़फ़स की आह-ए-आतिश-बार से
बिजलियाँ गिरने लगी हैं ख़ाना-ए-सय्याद पर
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
सैकड़ों तूती-ज़बाँ हैं याँ असीर-ए-दाम-ए-ग़म
ख़ाना-ए-सय्याद और ये गुम्बद-ए-गर्दां है एक
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
हमें ज़ौक़-ए-असीरी छोड़ता है कब गुलिस्ताँ में
क़फ़स में जब तक ऐ सय्याद कोई ख़ाना ख़ाली है