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ग़ज़ल
शुक्रिया ऐ मौसम-ए-गुल पास-ए-वहशत है यही
गुल्सिताँ को तू ने हम-दीवार-ए-ज़िंदाँ कर दिया
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
पर्दा भी बात भी जल्वा भी पस-ए-दामन-ए-बर्क़
शोख़ियाँ हैं कि ये अंदाज़ है शरमाने का
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
गरचे अंदाज़-ए-बयाँ तो ख़ूब है वाइज़ के पास
हाँ मगर रख़्त-ए-सफ़र में बा-अमल सामाँ भी हो