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ग़ज़ल
पैग़ाम तो उन का आया है तुम शहर में 'तिश्ना' आ जाओ
सहरा है पसंदीदा हम को हम शहर में जा कर क्या करते
ज़हीर-उल-हसन तिश्ना
ग़ज़ल
जिस्म-ओ-जाँ कैसे कि ‘अक़्लों में तग़य्युर हो चला
था जो मकरूह अब पसंदीदा है और मक़्बूल है