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ग़ज़ल
वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
तिरी नज़रों से गिर कर आज भी ज़िंदा हूँ मैं क्या ख़ूब
तक़ाज़ा है ये ग़ैरत का पशेमानी से मर जाऊँ
महशर आफ़रीदी
ग़ज़ल
दिल का सौदा कर के उन से क्या पशेमानी हुई
क़द्र उस की फिर कहाँ जिस शय की अर्ज़ानी हुई
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
ये क्या क़ातिल हैं, पहले क़त्ल करते हैं मोहब्बत का
फिर उस के बा'द इज़हार-ए-पशेमानी भी करते हैं
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
न छेड़ इतना उन्हें ऐ वादा-ए-शब की पशेमानी
कि अब तो ईद मिलने पर भी वो शरमाए जाते हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
हम तो समझे थे कि उस से फ़ासले मिट जाएँगे
ख़ुद को ज़ाहिर भी किया लेकिन पशेमानी हुई
आशुफ़्ता चंगेज़ी
ग़ज़ल
पशेमानी के बा'द उस को गिराऊँ कैसे नज़रों से
कि जब वो बेवफ़ा था मेरे दिल से तब नहीं उतरा
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
बहुत समझा लिया दिल को बिछड़ना तो मुक़द्दर था
न जाने क्यूँ मिरे दिल से पशेमानी नहीं जाती
फ़रह इक़बाल
ग़ज़ल
हुई थी इक ख़ता सरज़द सो उस को मुद्दतें गुज़रीं
मगर अब तक मिरे दिल से पशेमानी नहीं जाती