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ग़ज़ल
किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे
फिर नई पौद की सूरत में उगा लेंगे तुझे
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
मिरे तार ओ पौद लर्ज़ां ब-हवा-ए-ना-मुरादी
मिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल दरख़्शाँ ब-तबस्सुम-ए-रियाई
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
नई पौद के सोच-महल में उट्ठीं नई नई दीवारें
जैसे घर वाले वैसा घर जैसा घर वैसी दीवारें
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
पौद-घरों में शोर उठा दाबों ने कहा हम बाग़ी हैं
गमलों की तहरीक-ए-बाग़ मुंडेरों तक निर्मूल गई
यासिर इक़बाल
ग़ज़ल
तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ
हुस्न-ए-यज़्दाँ से तुझे हुस्न-ए-बुताँ तक देखूँ