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ग़ज़ल
औने-पौने ग़ज़लें बेचीं नज़्मों का व्यापार किया
देखो हम ने पेट की ख़ातिर क्या क्या कारोबार किया
महमूद शाम
ग़ज़ल
होंट हुए हैं जूठे अपने दिल भी थोड़ा ग़ाएब है
तुम को मिलेंगे जानाँ आधे पौने ही हम काफ़ी हैं
मुदिता रस्तोगी
ग़ज़ल
मन धन सब क़ुर्बान किया अब सर का सौदा बाक़ी है
हम तो बिके थे औने-पौने प्यार की क़ीमत कम न हुई
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ
हुस्न-ए-यज़्दाँ से तुझे हुस्न-ए-बुताँ तक देखूँ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
ये मिरे पौदे ये मिरे पंछी ये मिरे प्यारे प्यारे लोग
मेरे नाम जो बादल आए बस्ती में बरसा देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
मैं तो उस पौदे को पानी भी नहीं देता कभी
कैसे खिल जाती है ये ग़म की कली शाम के बा'द
सिद्धार्थ सैनी साद
ग़ज़ल
जिन्हें सींचा था ख़ून-ए-दिल से अगले बाग़बानों ने
तरसते अब हैं पानी को वो पौदे मेरे गुलशन में