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ग़ज़ल
जेब में कुछ भी नहीं दिल है अमीरों जैसा
हाथ ख़ाली हैं मगर ख़ू-ए-अता रखते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
यहाँ 'आहन' जो बैठा है कनार-ए-तुर्बत-ए-आबा
सो इस के ताब-ए-शौक़-ए-ग़म की ताबानी नहीं जाती
अख़लाक़ आहन
ग़ज़ल
कब तक ऐ शोख़ जफ़ा-पेशा-ए-गुलफ़ाम नहीं
दिन नहीं रात नहीं सुब्ह नहीं शाम नहीं
सय्यद अमीर हसन बद्र
ग़ज़ल
कोह-ए-ग़म हम ने भी ओ ग़ैरत-ए-शीरीं काटा
जोश-ए-उल्फ़त में तिरे पेशा-ए-फ़र्हाद किया