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ग़ज़ल
शिकवा-ए-वादा-ख़िलाफ़ी का मिला अच्छा जवाब
पेशगी रक्खी थी इक उम्मीद बर आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मूजिब-ए-ख़िफ़्फ़त है 'आलम में तजर्रुद-पेशगी
मैं सुबुक-सार-ए-मोहब्बत हो के हल्का हो गया
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
हस्ती-ए-हुस्न-ओ-तग़ाफ़ुल-पेशगी का है गवाह
जाँ-ब-लब होना तुम्हारे आशिक़-ए-मदहोश का