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ग़ज़ल
जिस ने दिल मेरा दिया दाम-ए-मोहब्बत में फँसा
वो नहीं मालूम मुज को नासेहा क्या चीज़ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
एक परी की ज़ुल्फ़ों में यूँ फँसा हुआ है चाँद
हम को लगता है बादल में छुपा हुआ है चाँद
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
ग़ज़ल
ज़िंदा भी ख़ल्क़ में हूँ मरा भी हुआ हूँ मैं
हूँ मुख़्तलिफ़ भी इस में फँसा भी हुआ हूँ मैं