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ग़ज़ल
कूच अपना उस शहर तरफ़ है नामी हम जिस शहर के हैं
कपड़े फाड़ें ख़ाक-ब-सर हों और ब-इज़्ज़-ओ-जाह चलें
जौन एलिया
ग़ज़ल
उन लोगों के तो गर्द न फिर सब हैं लिबासी
सौ गज़ भी जो ये फाड़ें तो इक गज़ भी न वारें
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें
तिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
फड़क उठ्ठा कोई तेरी अदाए मा-'अरफ़ना पर
तिरा रुत्बा रहा बढ़-चढ़ के सब नाज़-आफ़रीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
ख़मोशियों की सदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
महर ओ मह उस की फबन देख के हैरान रहे
जब वरक़ यार की तस्वीर-ए-दो-रू का निकला
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
पढ़ता जा ये मंज़र-नामा ज़र्द अज़ीम पहाड़ों का
धूप खिली पलकों के ऊपर बर्फ़ जमी है आँखों में