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ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
हमें दी जाएगी फाँसी हमारे अपने जिस्मों में
उजाड़ी हैं तमन्नाओं की लाखों बस्तियाँ हम ने
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
अनल-हक़ कहने वाले आज भी मौजूद हैं लेकिन
उन्हें इस दौर में फाँसी पे लटकाया नहीं जाता
नवाज़ असीमी
ग़ज़ल
न गर्दन मारते हैं वो न देते हैं कभी फाँसी
हसीनों को ये सब मशहूर क्यूँ जल्लाद करते हैं
ज़रीफ़ लखनवी
ग़ज़ल
चढ़ते हैं लोग फाँसी पे किस जुर्म के तहत
तख़्ती तो पढ़ ही लेते हो तख़्ते पढ़ा करो
समीना रहमत मनाल
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
कब अपना हाथ पहुँचता गुलाब तक 'बिल्क़ीस'
मिरे नसीब से शाख़ों में जा फँसी है हवा
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
ग़ज़ल
जिन्हें बालों की फाँसी दी वो हरगिज़ जी नहीं सकते
जो ज़ुल्फ़ों में फँसाया उस के ग़म खाने से क्या हासिल