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ग़ज़ल
याद-ए-गेसू में हुआ मेरा ये धज्जी सा बदन
मुझ पे फबती कहते हैं मूबाफ़ है गेसू नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
ये उम्र और इश्क़ है 'आज़ुर्दा' जा-ए-शर्म
हज़रत ये बातें फबती थीं अहद-ए-शबाब में
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
ये उम्र और इश्क़ है 'आज़ुर्दा' जा-ए-शर्म
हज़रत ये बातें फबती हैं अहद-ए-शबाब में
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
रियाज़ हसन खाँ ख़याल
ग़ज़ल
मुसहफ़-ए-रुख़ को वो दिखलाएँ अगर तीसों दिन
नई फबती मुझे सूझी कहूँ सीपारे हैं