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ग़ज़ल
मिटाना था उसे भी जज़्बा-ए-शौक़-ए-फ़ना तुझ को
निशान-ए-क़ब्र-ए-मजनूँ दाग़ है सहरा के दामन में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
बहुत अपनी ताक बुलंद थी कोई बीस गज़ की कमंद थी
पर उछाल फाँदा वो बंद थी तिरे चौकी-दारों की जाग से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
नैनों में उस की जादू ज़ुल्फ़ाँ में उस की फाँदा
दिल के शिकार में वो शहबाज़ है सरापा
फ़ाएज़ देहलवी
ग़ज़ल
बने जो बाल का फंदा तुम्हारी तेग़ का बाल
तो मुर्ग़-ए-जाँ के लिए बेहतर इस से दाम नहीं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
हुस्न-ओ-इश्क़ की अन-बन क्या है दिल के फँसाने का फंदा
अपने हाथों ख़ुद आफ़त में जा के ये ना-माक़ूल पड़ा
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
ढीला पड़ता था सूली का फंदा उस की गर्दन पर
मेरे क़ातिल को मुंसिफ़ ने फ़िदया ले कर छोड़ दिया
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
इस माया-जाल से बच कर चल हर एक क़दम पर फंदा है
संसार की माया धोका है संसार की माया सपना है
फ़रहत कानपुरी
ग़ज़ल
बात करना हो गया मुश्किल बुतों के सामने
पड़ गया फंदा गले में रिश्ता-ए-ज़ुन्नार का