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ग़ज़ल
बला-ए-जाँ हैं ये तस्बीह और ज़ुन्नार के फंदे
दिल-ए-हक़-बीं को हम इस क़ैद से आज़ाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
नहीं कुछ सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार के फंदे में गीराई
वफ़ादारी में शैख़ ओ बरहमन की आज़माइश है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
देख लो ऐ गुल-रुख़ो मुर्ग़ान-ए-दिल पाबंद हैं
बाल के फँदे की सूरत हैं तुम्हारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
इक न इक फंदे ही में फँसना है जब इंसान को
दोश पर दाम-ए-सियाह-ए-सुम्बुलिस्ताँ क्यूँ न हो
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
फंदे में फँस के मैं उस के न हुआ फिर जाँ-बर
तार-ए-गेसू ने तिरे मार उतारा मुझ को
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता
कि ज्यूँ फाँदे में आते हैं हिरन आहिस्ता-आहिस्ता
वली दकनी
ग़ज़ल
बहुत से रब्त इक-तरफ़ा भी होते हैं तअ’ल्लुक़ में
बराबर 'इश्क़ के फंदे में गीराई नहीं होती
आक़िब साबिर
ग़ज़ल
बूझेगा क़द्र मुझ दिल-ए-आशुफ़्ता-हाल की
फाँदे में ज़ुल्फ़ के जो गिरफ़्तार होवेगा
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
जीवन भेदन की चिंता छोड़ो आओ कुछ इस पर बात करें
हम धरती के फंदे में हैं धरती किस के जाल में है
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
ग़ज़ल
फंदे में उस के ताइर-ए-दिल आ रहेगा आप
मुर्ग़-ए-नज़र को दाम में पहले फँसाए ज़ुल्फ़
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
फंदे में फँस गया दिल-ए-नादाँ हज़ार हैफ़
किस को ख़बर थी ज़ुल्फ़ तुम्हारी तनाब है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
तहय्युर के फँदे में सैद हो कर चौकड़ी भूले
अगर आहू कूँ दिखलाऊँ सजन की अचपली अँखियाँ