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ग़ज़ल
सिफ़त-ए-बर्क़ चमकता है मिरा फ़िक्र-ए-बुलंद
कि भटकते न फिरें ज़ुल्मत-ए-शब में राही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
टूटा टूटा हुआ दिल ले के फिरें गलियों में
कच्ची मिट्टी के खिलौनों की दुकाँ देख आएँ
क़ैसर-उल जाफ़री
ग़ज़ल
हर रात मचाते फिरें हैं शौक़ से धूमें
ये मस्त-ए-मय-ए-इश्क़ हैं कब ख़ौफ़-ए-असस में
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
किस किस से मुँह छुपाते फिरें हम तुम्हारे बा'द
तुम ने कहाँ कहाँ हमें रुस्वा नहीं किया
अहमद तारिक़
ग़ज़ल
बोस-ओ-कनार के लिए ये सब फ़रेब हैं
इज़हार-ए-पाक-बाज़ी-ओ-ज़ौक़-ए-नज़र ग़लत
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
हुआ सफ़ेद तिरी इंतिज़ार में आख़िर
अजब तरह से फिरे दीदा-ए-पुर-आब के दिन