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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
तुझे चश्म-ए-मस्त पता भी है कि शबाब गर्मी-ए-बज़्म है
तुझे चश्म-ए-मस्त ख़बर भी है कि सब आबगीने पिघल गए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
सुना है बर्फ़ के टुकड़े हैं दिल हसीनों के
कुछ आँच पा के ये चाँदी पिघल तो सकती है