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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
देखो तो पेट बन गया आख़िर ग़ुबारा गैस का
खाते हो इतना गोश्त क्यों पीते हो इतनी चाय क्यों
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
माना शराब पीते हैं तो क्या हुआ मियाँ
या'नी कि आप कहते हैं फ़ाज़िल न होंगे हम
मुंतज़िर फ़िरोज़ाबादी
ग़ज़ल
बैठ के यारों की महफ़िल में पीते रहना देर तलक
अपने-आप को भूल ही जाना हम को अच्छा लगता था
कृष्ण अदीब
ग़ज़ल
ये तो हर रोज़ का मामूल है हैरान हो क्यूँ
प्यास ही पीते हैं हम भूक ही हम खाते हैं