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ग़ज़ल
बैरन रीत बड़ी दुनिया की आँख से जो भी टपका मोती
पलकों ही से उठाना होगा पलकों ही से पिरोना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ में मोती पिरोना मेरे हक़ में ज़हर है
आज ऐ मश्शाता-ए-दंदाँ दहान-ए-यार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
बहुत मुश्किल है लफ़्ज़ों में पिरोना दिल की हालत को
बताए ही बिना जो बात कह दे वो बयाँ ढूँडें
प्रोफ़ेसर महमूद आलम
ग़ज़ल
ज़मीन-ए-चश्म-ए-नम में हम को तेरा ख़्वाब बोना था
तिरी हर याद का मोती तो पलकों में पिरोना था
लुबना सफ़दर
ग़ज़ल
हमारी नब्ज़ में जुम्बिश है पाँच हिज्र के बा'द
हमारा इश्क़ पुराना है राएगानी से