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ग़ज़ल
लाखों ग़मों के हम पे तो संदूक़ खुल पड़े
क़िस्मत जो खोल दे वो पिटारा नहीं मिला
अंकित दीक्षित अर्ज़
ग़ज़ल
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
तिरी दास्ताँ कोई और थी मिरा वाक़िआ कोई और है