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ग़ज़ल
रास्ते के पेच-ओ-ख़म क्या शय हैं सोचा ही नहीं
हम सफ़र पर जब से निकले मुड़ के देखा ही नहीं
अजमल अजमली
ग़ज़ल
अजब है 'मेहर' से उस शोख़ की विसाल का वक़्त
वो दोपहर कि जो मख़्सूस है ज़वाल का वक़्त
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
राज़-ए-अलम से है शायद कि मिरा राज़ जुदा
मुझ से मिलने में है उस आँख का अंदाज़ जुदा
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली
तू ने पर ओ सितम-शिआ'र अब भी मिरी ख़बर न ली