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ग़ज़ल
तीरा दिल को सर चढ़ा कर ये समर हासिल हुआ
बाढ़ आई तेग़ पर संग-ए-फ़साँ चक्कर में है
सिराज मीर ख़ान साहब सहर
ग़ज़ल
सख़्त-जानी से दिल-ए-मुज़्तर जो तड़पा वक़्त-ए-क़त्ल
बन गया संग-ए-फ़साँ क़ातिल तिरी शमशीर का
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
जौहर-ए-ज़ाती हैं उस की तेज़ियाँ ऐ संग-दिल
तेग़-ए-अबरू को तिरी संग-ए-फ़साँ से क्या ग़र्ज़