ख़ूगर-ए-लज़्ज़त हूँ मैं किस शोख़ की ता'ज़ीर का
दिल को हसरत है कि पहलू ढूँडिए तक़्सीर का
था मिरा हंगामा-ए-वहशत अज़ल से पेशतर
अर्श की ज़ंजीर टुकड़ा है मिरी ज़ंजीर का
मर गया ज़िंदाँ में जब मैं वहशी-ए-आतिश-नफ़स
बुझ गया शो'ला चराग़-ए-ख़ाना-ए-ज़ंजीर का
सख़्त-जानी से दिल-ए-मुज़्तर जो तड़पा वक़्त-ए-क़त्ल
बन गया संग-ए-फ़साँ क़ातिल तिरी शमशीर का
हो के बिस्मिल आरज़ू-ए-गुफ़्तगू क़ातिल से है
हर दहान-ए-ज़ख़्म नक़्शा है लब-ए-तक़रीर का
इतनी है मश्क़-ए-तसव्वुर इंतिज़ार-ए-क़त्ल में
मर्दुमक है आँख में जौहर तिरी शमशीर का
जान कर ठंडी हवा वो चैन से सोते तो हैं
दम भरूँ क्यूँ-कर न आह-ए-सर्द-ए-बे-तासीर का
होता है इंसान पैदा वास्ते फ़रियाद के
ये इशारा है सरीर-ए-ख़ामा-ए-तहरीर का
रूह आ जाती है तन में तेग़-ए-उर्यां देख कर
मुर्ग़-ए-जाँ बुलबुल है बाग़-ए-जौहर-ए-शमशीर का
आज तक आवाज़ आती है दहान-ए-गोर से
है ये मदफ़न कुश्ता-ए-तेग़-ए-लब-ए-तक़रीर का
और दूना ग़म उठाया की मिटाने की जो फ़िक्र
दाग़-ए-हसरत हो गया लिक्खा मिरी तक़दीर का
रफ़्ता रफ़्ता यूँ घुलाया क़ैद में ग़म ने 'नज़र'
तौक़-ए-गर्दन पाँव में हल्क़ा बना ज़ंजीर का
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