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ग़ज़ल
लुत्फ़ आए जो शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन सो जाए
क्यूँकि वो गोश-बर-आवाज़ नज़र आते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सुनता है कौन आशिक़ों की आह-ओ-ज़ारियाँ
गोश-ए-चमन को शोर-ए-अनादिल से क्या ग़रज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
रू-ब-रू है हाथ बाँधे ख़िल्क़त-ए-बे-चशम-ओ-गोश
और है वा'इज़ ग़लत मिम्बर ग़लत ख़ुत्बा ग़लत
सरमद सहबाई
ग़ज़ल
वाँ करम को उज़्र-ए-बारिश था इनाँ-गीर-ए-ख़िराम
गिर्ये से याँ पुम्बा-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अज़-पए-दाग़-ए-दिल-ए-बादा-परसताँ 'बेदार'
पुम्बा-ए-शीशा-ए-मय मर्हम-ए-काफ़ूर हुआ
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
चाक करूँ हूँ जेब-ए-सब्र ताले-ए-अंदलीब देख
सुनने को उस का दर्द-ए-दिल गुल ही ब-शक्ल-ए-गोश है