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ग़ज़ल
वाक़िफ़ राय बरेलवी
ग़ज़ल
बह रही है फिर वही पुर्वा सुहानी रात में
चल पड़ी है स्वप्न की फिर राजधानी रात में
उपदेश विद्यार्थी
ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा