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ग़ज़ल
हम से नाम जुनूँ का क़ाइम हम से दश्त की आबादी
हम से दर्द का शिकवा करते हम को ज़ख़्म दिखाते हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
'ज़फ़र' इक बात पर दाइम वो होवे किस तरह क़ाइम
जो अपनी फेरता निय्यत कभी यूँ है कभी वूँ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
तबी'अत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है
वही रंज-ओ-अलम हैं पर ख़लिश कम होती जाती है
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
फ़ना इसी रंग पर है क़ाइम फ़लक वही चाल चल रहा है
शिकस्ता ओ मुंतशिर है वो कल जो आज साँचे में ढल रहा है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
नई तहज़ीब में दिक़्क़त ज़ियादा तो नहीं होती
मज़ाहिब रहते हैं क़ाइम फ़क़त ईमान जाता है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मुद्दतों क़ाइम रहेंगी अब दिलों में गर्मियाँ
मैं ने फोटो ले लिया उस ने नज़र पहचान ली
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ूगर-ए-क़ैद-ए-वफ़ा पर खुल चुका ज़िंदाँ का राज़
जुर्म थी वो क़ैद ये उस जुर्म की ताज़ीर है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
अहद-ए-ज़ब्त-ए-ग़म पे क़ाइम था दम-ए-रुख़्सत मगर
वो सुकूत-ए-जाँ भी दरिया हो गया होना ही था
अशअर नजमी
ग़ज़ल
तू वज़’ पर अपनी क़ाइम रह क़ुदरत की मगर तहक़ीर न कर
दे पा-ए-नज़र को आज़ादी ख़ुद-बीनी को ज़ंजीर न कर
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ख़ुम ब ख़ुम छलके तिरी सहबा नशा क़ाइम रहे
लज़्ज़त-ए-ज़हराब ग़म से कब हुआ था आश्ना