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ग़ज़ल
कहीं कंकरों को ज़बान दे कहीं सच को हर्फ़-ए-बयान दे
दर-ए-हद हद-ए-इनआ'म है सर-ए-क़द क़द-ए-इल्हाम है
नासिर शहज़ाद
ग़ज़ल
दस्त-ए-क़ातिल में कोई तेग़ न ख़ंजर होता
मिरा साया जो मिरे क़द के बराबर होता
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
इस ज़माने में भी इल्हाम है 'मंज़ूर' का शे'र
मैं किसी दौर में हसरत-कश-ए-इल्हाम न था
अली मंज़ूर हैदराबादी
ग़ज़ल
कहाँ का ख़ौफ़-ए-ज़िन्दाँ दहशत-ए-दार-ओ-रसन कैसी
क़द-ए-माशूक-ओ-ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन की याद आती है
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
आदमी ही कुछ नहीं महव-ए-क़द-ए-दिल-जू-ए-दोस्त
देख कर हैरान हैं जिन्न-ओ-मलक भी रू-ए-दोस्त
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
मैं ने कब दावा-ए-इल्हाम किया है 'ताबाँ'
लिख दिया करता हूँ जो दिल पे गुज़रती जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
क़ाइल ब-दिल हूँ तब अमल-ए-हुब का मैं कि जब
उस शोख़ से ब-जद्द-ओ-कद-ए-आमिलाँ मिलूँ
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
देखूँ हूँ गर अलिफ़ को तो ऐ दिल हज़ार बार
करता हूँ याद तेरे क़द-ए-दिल-नशीन को