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ग़ज़ल
मुंतज़िर आप के आने का कई दिन से हूँ
क्या है ताख़ीर क़दम-रंजा करो बिस्मिल्लाह
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
पए ताज़ीम-ए-दर्द उठता है ऐ नावक-फ़गन दिल में
क़दम-रंजा जो तेरे नावक-ए-बेदाद करते हैं
वसीम ख़ैराबादी
ग़ज़ल
राना जगी
ग़ज़ल
किस क़दर रंज-ओ-मुसीबत का मुरक़्क़ा हूँ मैं
काँप उठता है मिरा दिल तिरी याद आने से
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर देहलवी
ग़ज़ल
इस सदी ने जिस क़दर रंज-ओ-ग़म बख़्शे मुझे
बस उसी की दास्ताँ हर गाम लिखता जाऊँगा