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ग़ज़ल
उन्हीं के वास्ते हैं इम्तिहान-ए-इश्क़ की क़ैदें
जो अपनी हस्ती-ए-मौहूम का मंशा समझते हैं
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
पयाम फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
नई क़ैदें बढ़ीं मिन्नत-गुज़ार-ए-बाल-ओ-पर हो कर
दवा-ए-दर्द-ए-दिल आई अज़ाब-ए-दर्द-ए-सर हो कर
नज्म आफ़न्दी
ग़ज़ल
हमारी हर ग़रज़ में सख़्त क़ैदें लगती जाती हैं
हर आसानी हमें आइंदा दिक़्क़त होने वाली है
नादिर काकोरवी
ग़ज़ल
ये क़ैदें मेरे होने पर मकानों की ज़मानों की
अमानत मेरी होने में ज़मीनों आसमानों की
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी
वो दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र
मिस्र ओ हिजाज़ से गुज़र पारस ओ शाम से गुज़र
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जिस घड़ी आया पलट कर इक मिरा बिछड़ा हुआ
आम से कपड़ों में था वो फिर भी शहज़ादा लगा