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ग़ज़ल
ये माना क़ल्ब-ए-ज़मीं तक तिरी पहुँच है मगर
तलाश-ए-औज-ए-सुरैया नहीं तो कुछ भी नहीं
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
आसमाँ की खोज में हम से ज़मीं भी खो गई
कितनी पस्ती में मज़ाक़-ए-बाल-ओ-पर ले जाएगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बुलबुल न बाज़ आइयो फ़रियाद-ओ-आह से
कब तक न होगी क़ल्ब-ए-गुल-ए-तर को इत्तिलाअ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
है इसी में क़ल्ब-ए-महज़ूँ शर्तिया कहता हूँ मैं
खोल मुट्ठी तेरी चोरी मह-लक़ा पकड़ी गई