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ग़ज़ल
शुक्र-ए-ख़ुदा कि ज़ुल्म से मा'ज़ूर है फ़लक
बर्तानिया है ख़ल्क़ की ग़म-ख़्वार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
यार है ख़ंजर-ब-कफ़ और जाँ-निसारों का हुजूम
हाए ये किस जुर्म में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-हुजूम-ए-ख़ल्क़ से हों बंद रास्ते
वो रश्क-ए-यूसुफ़ आए जो बाज़ार की तरफ़
राजा गिरधारी प्रसाद बाक़ी
ग़ज़ल
दाग़-ए-ग़म-ए-वतन है निशान-ए-अज़ीज़-ए-ख़ल्क़
दिल पर न जिस का नक़्श हो ये वो नगीं नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
इक मौज-ए-ख़ून-ए-ख़ल्क़ थी किस की जबीं पे थी
इक तौक़-ए-फ़र्द-ए-जुर्म था किस के गले में था
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
सर मिरा मेरी जबीन इस बात की थी मुस्तहिक़
सज्दा-गाह-ए-ख़ल्क़ उस का नक़्श-ए-पा क्यूँकर हुआ