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ग़ज़ल
ये क्या अंदाज़-ए-क़स्साम-ए-अज़ल था क्या नवाज़िश थी
मिरे हिस्सा में ले दे कर हयात-ए-मुस्तआर आई
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
दिल भी क़स्साम-ए-अज़ल ने वो दिया क़िस्मत से
जिस ने दुनिया में न रक्खा किसी क़ाबिल मुझ को
शोला करारवी
ग़ज़ल
तू अगर बे-मंतिक़ी पर दिल की हँसता है तो क्या
दिल जिधर ले जाए क़स्साम-ए-अज़ल जाएँगे हम
वली आलम शाहीन
ग़ज़ल
तुझ को क़स्साम-ए-अज़ल देना न था ये इश्क़-ए-ख़ाम
काश दिल के साथ देता सोज़-ए-परवाना मुझे
ज़ब्त सीतापुरी
ग़ज़ल
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
पत्थरों के रास्ते से अपने शीशे के क़दम
सई-ए-ला-हासिल का इक पैग़ाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
इस ‘अक़ीदे ने लिया क़ैसर-ओ-किसरा से ख़िराज
मौत का वक़्त अज़ल से है मुक़र्रर देखो
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
हम-नशीं पूछ न हाल-ए-दिल-ए-नाकाम-ए-अज़ल
यही हसरत रही पूरा कोई अरमाँ न हुआ