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ग़ज़ल
फ़ारूक़ बाँसपारी
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
मर्द-ए-दरवेश का सरमाया है आज़ादी ओ मर्ग
है किसी और की ख़ातिर ये निसाब-ए-ज़र-ओ-सीम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सब कुछ अल्लाह ने दे रक्खा है माल-ओ-ज़र-ओ-सीम
हैं मगर अहल-ए-दुवल अक़्ल-ओ-ख़िरद के मुहताज
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
क़िल्लत-ए-अश्क अब कभी होगी न 'उम्र भर हमें
हम ने ख़ुशी के शौक़ में इतने तो ग़म कमा लिए
मन्नान बिजनोरी
ग़ज़ल
सुकून-ए-दिल की तलब में तड़प रहा हूँ मगर
असीर लज़्ज़त-ए-दुनिया-ए-सीम-ओ-ज़र में हूँ